Summary
He, who, being not deluded, thus knows Me as the Highest of persons - he knows all and serves Me with his entire being, O descendant of Bharata !
पदच्छेदः
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यो | यद् (१.१) |
मामेवमसंमूढो | मद् (२.१)–एवम् (अव्ययः)–असंमूढ (१.१) |
जानाति | जानाति (√ज्ञा लट् प्र.पु. एक.) |
पुरुषोत्तमम् | पुरुषोत्तम (२.१) |
स | तद् (१.१) |
सर्वविद्भजति | सर्व–विद् (१.१)–भजति (√भज् लट् प्र.पु. एक.) |
मां | मद् (२.१) |
सर्वभावेन | सर्व–भाव (३.१) |
भारत | भारत (८.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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यो | मा | मे | व | म | सं | मू | ढो |
जा | ना | ति | पु | रु | षो | त्त | मम् |
स | स | र्व | वि | द्भ | ज | ति | मां |
स | र्व | भा | वे | न | भा | र | त |