Summary
Of which (Tree) the branches, spreading downward and upward, well developed with Strands, have sense objects as sprouts; also below in the human world are Its roots, stretching successively, having actions for their sub-knots.
पदच्छेदः
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अधश्चोर्ध्वं | अधस् (अव्ययः)–च (अव्ययः)–ऊर्ध्वम् (अव्ययः) |
प्रसृतास्तस्य | प्रसृत (√प्र-सृ + क्त, १.३)–तद् (६.१) |
शाखा | शाखा (१.३) |
गुणप्रवृद्धा | गुण–प्रवृद्ध (√प्र-वृध् + क्त, १.३) |
विषयप्रवालाः | विषय–प्रवाल (१.३) |
अधश्च | अधस् (अव्ययः)–च (अव्ययः) |
मूलान्यनुसंततानि | मूल (१.३)–अनुसंतत (√अनुसम्-तन् + क्त, १.३) |
कर्मानुबन्धीनि | कर्मन्–अनुबन्धिन् (१.३) |
मनुष्यलोके | मनुष्य–लोक (७.१) |
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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अ | ध | श्चो | र्ध्वं | प्र | सृ | ता | स्त | स्य | शा | खा |
गु | ण | प्र | वृ | द्धा | वि | ष | य | प्र | वा | लाः |
अ | ध | श्च | मू | ला | न्य | नु | सं | त | ता | नि |
क | र्मा | नु | ब | न्धी | नि | म | नु | ष्य | लो | के |