Summary
Whatsoever body he attains to and also from whatsoever He goes up, the Lord proceeds taking them with Him just as the wind takes odours from their receptacle.
पदच्छेदः
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शरीरं | शरीर (२.१) |
यदवाप्नोति | यद् (२.१)–अवाप्नोति (√अव-आप् लट् प्र.पु. एक.) |
यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः | यद् (२.१)–च (अव्ययः)–अपि (अव्ययः)–उत्क्रामति (√उत्-क्रम् लट् प्र.पु. एक.)–ईश्वर (१.१) |
गृहीत्वैतानि | गृहीत्वा (√ग्रह् + क्त्वा)–एतद् (२.३) |
संयाति | संयाति (√सम्-या लट् प्र.पु. एक.) |
वायुर्गन्धानिवाशयात् | वायु (१.१)–गन्ध (२.३)–इव (अव्ययः)–आशय (५.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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श | री | रं | य | द | वा | प्नो | ति |
य | च्चा | प्यु | त्क्रा | म | ती | श्व | रः |
गृ | ही | त्वै | ता | नि | सं | या | ति |
वा | यु | र्ग | न्धा | नि | वा | श | यात् |