Summary
'That enemy has been slain by me; and I shall slay others also; I am the lord; I am a man of enjoyment; I am successful, mighty and happy';
पदच्छेदः
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असौ | अदस् (१.१) |
मया | मद् (३.१) |
हतः | हत (√हन् + क्त, १.१) |
शत्रुर् | शत्रु (१.१) |
हनिष्ये | हनिष्ये (√हन् लृट् उ.पु. ) |
चापरानपि | च (अव्ययः)–अपर (२.३)–अपि (अव्ययः) |
ईश्वरो | ईश्वर (१.१) |
ऽहम् | मद् (१.१) |
अहं | मद् (१.१) |
भोगी | भोगिन् (१.१) |
सिद्धो | सिद्ध (√सिध् + क्त, १.१) |
ऽहं | मद् (१.१) |
बलवान्सुखी | बलवत् (१.१)–सुखिन् (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | सौ | म | या | ह | तः | श | त्रु |
र्ह | नि | ष्ये | चा | प | रा | न | पि |
ई | श्व | रो | ऽह | म | हं | भो | गी |
सि | द्धो | ऽहं | ब | ल | वा | न्सु | खी |