Summary
Endowed with many thoughts; confused highly; enslaved simply by their delusion; and addicated to the gratification of desires; they fall into the hell and into what is foul.
पदच्छेदः
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अनेकचित्तविभ्रान्ता | अनेक–चित्त–विभ्रान्त (√वि-भ्रम् + क्त, १.३) |
मोहजालसमावृताः | मोह–जाल–समावृत (√समा-वृ + क्त, १.३) |
प्रसक्ताः | प्रसक्त (√प्र-सञ्ज् + क्त, १.३) |
कामभोगेषु | काम–भोग (७.३) |
पतन्ति | पतन्ति (√पत् लट् प्र.पु. बहु.) |
नरके | नरक (७.१) |
ऽशुचौ | अशुचि (७.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | ने | क | चि | त्त | वि | भ्रा | न्ता |
मो | ह | जा | ल | स | मा | वृ | ताः |
प्र | स | क्ताः | का | म | भो | गे | षु |
प | त | न्ति | न | र | के | ऽशु | चौ |