Summary
Clinging fast to egotism, force, pride, craving, and anger, these envious men hate Me in the bodies of their own and of others.
पदच्छेदः
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अहंकारं | अहंकार (२.१) |
बलं | बल (२.१) |
दर्पं | दर्प (२.१) |
कामं | काम (२.१) |
क्रोधं | क्रोध (२.१) |
च | च (अव्ययः) |
संश्रिताः | संश्रित (√सम्-श्रि + क्त, १.३) |
मामात्मपरदेहेषु | मद् (२.१)–आत्मन्–पर–देह (७.३) |
प्रद्विषन्तो | प्रद्विषत् (√प्र-द्विष् + शतृ, १.३) |
ऽभ्यसूयकाः | अभ्यसूयक (१.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | हं | का | रं | ब | लं | द | र्पं |
का | मं | क्रो | धं | च | सं | श्रि | ताः |
मा | मा | त्म | प | र | दे | हे | षु |
प्र | द्वि | ष | न्तो | ऽभ्य | सू | य | काः |