Summary
To the hell, three-fold is the gate that ruins the Self : [They are] desire, anger as well as greed. Hence one should avoid these three.
पदच्छेदः
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त्रिविधं | त्रिविध (१.१) |
नरकस्येदं | नरक (६.१)–इदम् (१.१) |
द्वारं | द्वार (१.१) |
नाशनमात्मनः | नाशन (१.१)–आत्मन् (६.१) |
कामः | काम (१.१) |
क्रोधस्तथा | क्रोध (१.१)–तथा (अव्ययः) |
लोभस् | लोभ (१.१) |
तस्मादेतत्त्रयं | तद् (५.१)–एतद् (२.१)–त्रय (२.१) |
त्यजेत् | त्यजेत् (√त्यज् विधिलिङ् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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त्रि | वि | धं | न | र | क | स्ये | दं |
द्वा | रं | ना | श | न | मा | त्म | नः |
का | मः | क्रो | ध | स्त | था | लो | भ |
स्त | स्मा | दे | त | त्त्र | यं | त्य | जेत् |