Summary
O son of Kunti ! A man, who has deserted these three gates of darkness, does what is good for his Self and thery reaches the highest goal.
पदच्छेदः
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एतैर्विमुक्तः | एतद् (३.३)–विमुक्त (√वि-मुच् + क्त, १.१) |
कौन्तेय | कौन्तेय (८.१) |
तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः | तमस्–द्वार (३.३)–त्रि (३.३)–नर (१.१) |
अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो | अनेक–जन्मन्–संसिद्ध (√सम्-सिध् + क्त, १.१)–ततस् (अव्ययः) |
याति | याति (√या लट् प्र.पु. एक.) |
परां | पर (२.१) |
गतिम् | गति (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ए | तै | र्वि | मु | क्तः | कौ | न्ते | य |
त | मो | द्वा | रै | स्त्रि | भि | र्न | रः |
आ | च | र | त्या | त्म | नः | श्रे | य |
स्त | तो | या | ति | प | रां | ग | तिम् |