Summary
He, who neglects the injunction of the scriptures, and acts according to his own will-he attains neither the success, nor happiness nor the highest goal (emancipation).
पदच्छेदः
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यः | यद् (१.१) |
शास्त्रविधिमुत्सृज्य | शास्त्र–विधि (२.१)–उत्सृज्य (√उत्-सृज् + ल्यप्) |
वर्तते | वर्तते (√वृत् लट् प्र.पु. एक.) |
कामकारतः | कामकार (५.१) |
न | न (अव्ययः) |
स | तद् (१.१) |
सिद्धिमवाप्नोति | सिद्धि (२.१)–अवाप्नोति (√अव-आप् लट् प्र.पु. एक.) |
न | न (अव्ययः) |
सुखं | सुख (२.१) |
न | न (अव्ययः) |
परां | पर (२.१) |
गतिम् | गति (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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यः | शा | स्त्र | वि | धि | मु | त्सृ | ज्य |
व | र्त | ते | का | म | का | र | तः |
न | स | सि | द्धि | म | वा | प्नो | ति |
न | सु | खं | न | प | रां | ग | तिम् |