Summary
Therefore, by considering the scripture as your authority in determining as to what is to be done and what is not to be done, you should perform action, laid down by the regulations of the scriptures.
पदच्छेदः
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तस्माच्छास्त्रं | तस्मात् (अव्ययः)–शास्त्र (१.१) |
प्रमाणं | प्रमाण (१.१) |
ते | त्वद् (६.१) |
कार्याकार्यव्यवस्थितौ | कार्य–अकार्य–व्यवस्थिति (७.१) |
ज्ञात्वा | ज्ञात्वा (√ज्ञा + क्त्वा) |
शास्त्रविधानोक्तं | शास्त्र–विधान–उक्त (√वच् + क्त, २.१) |
कर्म | कर्मन् (२.१) |
कर्तुमिहार्हसि | कर्तुम् (√कृ + तुमुन्)–इह (अव्ययः)–अर्हसि (√अर्ह् लट् म.पु. ) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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त | स्मा | च्छा | स्त्रं | प्र | मा | णं | ते |
का | र्या | का | र्य | व्य | व | स्थि | तौ |
ज्ञा | त्वा | शा | स्त्र | वि | धा | नो | क्तं |
क | र्म | क | र्तु | मि | हा | र्ह | सि |