Summary
The divine wealth is meant for total emancipation and the demoniac one is meant for complete bondage. Grieve not, O son of Pandu. For the divine wealth you are born
पदच्छेदः
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दैवी | दैव (१.१) |
संपद्विमोक्षाय | सम्पद् (१.१)–विमोक्ष (४.१) |
निबन्धायासुरी | निबन्ध (४.१)–आसुर (१.१) |
मता | मत (√मन् + क्त, १.१) |
भवन्ति | भवन्ति (√भू लट् प्र.पु. बहु.) |
संपदं | सम्पद् (२.१) |
दैवीमभिजातस्य | दैव (२.१)–अभिजात (√अभि-जन् + क्त, ६.१) |
भारत | भारत (८.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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दै | वी | सं | प | द्वि | मो | क्षा | य |
नि | ब | न्धा | या | सु | री | म | ता |
मा | शु | चः | सं | प | दं | दै | वी |
म | भि | जा | तो | ऽसि | पा | ण्ड | व |