Summary
There are two types of creations of beings in this world [viz.] the divine and also the demoniac. The divine one has been properly described in detail; hear [now] the demoniac one from Me, O son of Prtha !
पदच्छेदः
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द्वौ | द्वि (१.२) |
भूतसर्गौ | भूत–सर्ग (१.२) |
लोके | लोक (७.१) |
ऽस्मिन्दैव | इदम् (७.१)–दैव (१.१) |
आसुर | आसुर (१.१) |
एव | एव (अव्ययः) |
च | च (अव्ययः) |
दैवो | दैव (१.१) |
विस्तरशः | विस्तरशः (अव्ययः) |
प्रोक्त | प्रोक्त (√प्र-वच् + क्त, १.१) |
आसुरं | आसुर (२.१) |
पार्थ | पार्थ (८.१) |
मे | मद् (६.१) |
शृणु | शृणु (√श्रु लोट् म.पु. ) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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द्वौ | भू | त | स | र्गौ | लो | के | ऽस्मि |
न्दै | व | आ | सु | र | ए | व | च |
दै | वो | वि | स्त | र | शः | प्रो | क्त |
आ | सु | रं | पा | र्थ | मे | शृ | णु |