Summary
This three-fold austerity, undertaken (observed) with best faith, by men who are maters of Yoga and have no desire for its fruits-they call it to be of the Sattva.
पदच्छेदः
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श्रद्धया | श्रद्धा (३.१) |
परया | पर (३.१) |
तप्तं | तप्त (√तप् + क्त, २.१) |
तपस्तत्त्रिविधं | तपस् (२.१)–तद् (२.१)–त्रिविध (२.१) |
नरैः | नर (३.३) |
अफलाकाङ्क्षिभिर्युक्तैः | अ (अव्ययः)–फल–आकाङ्क्षिन् (३.३)–युक्त (√युज् + क्त, ३.३) |
सात्त्विकं | सात्त्विक (२.१) |
परिचक्षते | परिचक्षते (√परि-चक्ष् लट् प्र.पु. बहु.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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श्र | द्ध | या | प | र | या | त | प्तं |
त | प | स्त | त्त्रि | वि | धं | न | रैः |
अ | फ | ला | का | ङ्क्षि | भि | र्यु | क्तैः |
सा | त्त्वि | कं | प | रि | च | क्ष | ते |