Summary
A gift which is given with the thought that 'One must give' and is given in a proper place, and at correct time to a worthy person, incapable of obliging in return-that gift is held to be of the Sattva.
पदच्छेदः
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दातव्यमिति | दातव्य (√दा + कृत्, १.१)–इति (अव्ययः) |
यद्दानं | यद् (१.१)–दान (१.१) |
दीयते | दीयते (√दा प्र.पु. एक.) |
ऽनुपकारिणे | अनुपकारिन् (४.१) |
देशे | देश (७.१) |
काले | काल (७.१) |
च | च (अव्ययः) |
पात्रे | पात्र (७.१) |
च | च (अव्ययः) |
तद्दानं | तद् (१.१)–दान (१.१) |
सात्त्विकं | सात्त्विक (१.१) |
स्मृतम् | स्मृत (√स्मृ + क्त, १.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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दा | त | व्य | मि | ति | य | द्दा | नं |
दी | य | ते | ऽनु | प | का | रि | णे |
दे | शे | का | ले | च | पा | त्रे | च |
त | द्दा | नं | सा | त्त्वि | कं | स्मृ | तम् |