Summary
Therefore, the scripture-prescribed acts of sacrifice, gift and austerity of those who are habituated to have Brahman-discourses, commence (or take place) invariably, with the utterance of OM.
पदच्छेदः
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तस्मादोमित्युदाहृत्य | तस्मात् (अव्ययः)–ॐ (अव्ययः)–इति (अव्ययः)–उदाहृत्य (√उदा-हृ + ल्यप्) |
यज्ञदानतपःक्रियाः | यज्ञ–दान–तपस्–क्रिया (१.३) |
प्रवर्तन्ते | प्रवर्तन्ते (√प्र-वृत् लट् प्र.पु. बहु.) |
विधानोक्ताः | विधान–उक्त (√वच् + क्त, १.३) |
सततं | सततम् (अव्ययः) |
ब्रह्मवादिनाम् | ब्रह्मन्–वादिन् (६.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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त | स्मा | दो | मि | त्यु | दा | हृ | त्य |
य | ज्ञ | दा | न | त | पः | क्रि | याः |
प्र | व | र्त | न्ते | वि | धा | नो | क्ताः |
स | त | तं | ब्र | ह्म | वा | दि | नाम् |