Summary
Without faith, whatever oblation is offered, what-ever gift is made, whatever austerity is practised, and whatever action is undertaken, that is called ASAT and it is of no avail after one's death and in this world.
पदच्छेदः
Click to Toggle
अश्रद्धया | अश्रद्धा (३.१) |
हुतं | हुत (√हु + क्त, १.१) |
दत्तं | दत्त (√दा + क्त, १.१) |
तपस्तप्तं | तपस् (१.१)–तप्त (√तप् + क्त, १.१) |
कृतं | कृत (√कृ + क्त, १.१) |
च | च (अव्ययः) |
यत् | यद् (१.१) |
असदित्युच्यते | असत् (१.१)–इति (अव्ययः)–उच्यते (√वच् प्र.पु. एक.) |
पार्थ | पार्थ (८.१) |
न | न (अव्ययः) |
च | च (अव्ययः) |
तत्प्रेत्य | तद् (१.१)–प्रेत्य (√प्र-इ + ल्यप्) |
नो | नो (अव्ययः) |
इह | इह (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
अ | श्र | द्ध | या | हु | तं | द | त्तं |
त | प | स्त | प्तं | कृ | तं | च | यत् |
अ | स | दि | त्यु | च्य | ते | पा | र्थ |
न | च | त | त्प्रे | त्य | नो | इ | ह |