Summary
The man of relinishment, who is well possessed of the Sattva, is wise and has his doubts destroyed-he hates not the unskilled action and clings not to the skilled action.
पदच्छेदः
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न | न (अव्ययः) |
द्वेष्ट्यकुशलं | द्वेष्टि (√द्विष् लट् प्र.पु. एक.)–अकुशल (२.१) |
कर्म | कर्मन् (२.१) |
कुशले | कुशल (७.१) |
नानुषज्जते | न (अव्ययः)–अनुषज्जते (√अनु-सञ्ज् लट् प्र.पु. एक.) |
त्यागी | त्यागिन् (१.१) |
सत्त्वसमाविष्टो | सत्त्व–समाविष्ट (√समा-विश् + क्त, १.१) |
मेधावी | मेधाविन् (१.१) |
छिन्नसंशयः | छिन्न (√छिद् + क्त)–संशय (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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न | द्वे | ष्ट्य | कु | श | लं | क | र्म |
कु | श | ले | ना | नु | ष | ज्ज | ते |
त्या | गी | स | त्त्व | स | मा | वि | ष्टो |
मे | धा | वी | छि | न्न | सं | श | यः |