Summary
Indeed, to relinish actions entirely is not possible for a body-bearing one; but whosoever relinishes the fruits of actions, he is said to be a man of [true] relinishment.
पदच्छेदः
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न | न (अव्ययः) |
हि | हि (अव्ययः) |
देहभृता | देहभृत् (३.१) |
शक्यं | शक्य (१.१) |
त्यक्तुं | त्यक्तुम् (√त्यज् + तुमुन्) |
कर्माण्यशेषतः | कर्मन् (२.३)–अशेषतस् (अव्ययः) |
यस्तु | यद् (१.१)–तु (अव्ययः) |
कर्मफलत्यागी | कर्मन्–फल–त्यागिन् (१.१) |
स | तद् (१.१) |
त्यागीत्यभिधीयते | त्यागिन् (१.१)–इति (अव्ययः)–अभिधीयते (√अभि-धा प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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न | हि | दे | ह | भृ | ता | श | क्यं |
त्य | क्तुं | क | र्मा | ण्य | शे | ष | तः |
य | स्तु | क | र्म | फ | ल | त्या | गी |
स | त्या | गी | त्य | भि | धी | य | ते |