Summary
The Bhagavat said The seers understand the act of renouncing the desire-motivated actions as renunciation; the experts declare the relinishment of the fruits of all actions to be relinishment.
पदच्छेदः
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काम्यानां | काम्य (६.३) |
कर्मणां | कर्मन् (६.३) |
न्यासं | न्यास (२.१) |
संन्यासं | संन्यास (२.१) |
कवयो | कवि (१.३) |
विदुः | विदुः (√विद् लिट् प्र.पु. बहु.) |
सर्वकर्मफलत्यागं | सर्व–कर्मन्–फल–त्याग (२.१) |
ततः | ततस् (अव्ययः) |
कुरु | कुरु (√कृ लोट् म.पु. ) |
यतात्मवान् | यत (√यम् + क्त)–आत्मवत् (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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का | म्या | नां | क | र्म | णां | न्या | सं |
सं | न्या | सं | क | व | यो | वि | दुः |
स | र्व | क | र्म | फ | ल | त्या | गं |
प्रा | हु | स्त्या | गं | वि | च | क्ष | णाः |