Summary
That instrument-of-knowledge, by means of which one considers the varied natures of different sorts in all beings as [really] different-that is regarded to be of the Rajas (Strand).
पदच्छेदः
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पृथक्त्वेन | पृथक्त्व (३.१) |
तु | तु (अव्ययः) |
यज्ज्ञानं | यद् (२.१)–ज्ञान (२.१) |
नानाभावान्पृथग्विधान् | नाना (अव्ययः)–भाव (२.३)–पृथग्विध (२.३) |
यः | यद् (१.१) |
स | तद् (१.१) |
सर्वेषु | सर्व (७.३) |
भूतेषु | भूत (७.३) |
नश्यत्सु | नश्यत् (√नश् + शतृ, ७.३) |
न | न (अव्ययः) |
विनश्यति | विनश्यति (√वि-नश् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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पृ | थ | क्त्वे | न | तु | य | ज्ज्ञा | नं |
ना | ना | भा | वा | न्पृ | थ | ग्वि | धान् |
वे | त्ति | स | र्वे | षु | भू | ते | षु |
त | ज्ज्ञा | नं | वि | द्धि | रा | ज | सम् |