Summary
The agent, who is a man of passion; who craves for the fruit of his action, and is avaricious; who is injurious by nature, is impure and is overpowered by joy and griefthat agent is proclaimed to be of the Rajas (Strand).
पदच्छेदः
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रागी | रागिन् (१.१) |
कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो | कर्मन्–फल–प्रेप्सु (१.१)–लुब्ध (√लुभ् + क्त, १.१) |
हिंसात्मको | हिंसा–आत्मक (१.१) |
ऽशुचिः | अशुचि (१.१) |
हर्षशोकान्वितः | हर्ष–शोक–अन्वित (१.१) |
कर्ता | कर्तृ (१.१) |
राजसः | राजस (१.१) |
परिकीर्तितः | परिकीर्तित (√परि-कीर्तय् + क्त, १.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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रा | गी | क | र्म | फ | ल | प्रे | प्सु |
र्लु | ब्धो | हिं | सा | त्म | को | ऽशु | चिः |
ह | र्ष | शो | का | न्वि | तः | क | र्ता |
रा | ज | सः | प | रि | की | र्ति | तः |