Summary
O best among the Bharatas ! Now from Me you must also listen to the three-fold happiness where one gets delighted by practice, and attains the end of suffering.
पदच्छेदः
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सुखं | सुख (२.१) |
त्विदानीं | तु (अव्ययः)–इदानीम् (अव्ययः) |
त्रिविधं | त्रिविध (२.१) |
शृणु | शृणु (√श्रु लोट् म.पु. ) |
मे | मद् (६.१) |
भरतर्षभ | भरत–ऋषभ (८.१) |
अभ्यासाद्रमते | अभ्यास (५.१)–रमते (√रम् लट् प्र.पु. एक.) |
यत्र | यत्र (अव्ययः) |
दुःखान्तं | दुःख–अन्त (२.१) |
च | च (अव्ययः) |
निगच्छति | निगच्छति (√नि-गम् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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सु | खं | त्वि | दा | नीं | त्रि | वि | धं |
शृ | णु | मे | भ | र | त | र्ष | भ |
अ | भ्या | सा | द्र | म | ते | य | त्र |
दुः | खा | न्तं | च | नि | ग | च्छ | ति |