Summary
Whether on the earth, or again among the gods in the heaven, there exists not a single being, which is free from these three Strands, born of the Material-Nature.
पदच्छेदः
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न | न (अव्ययः) |
तदस्ति | तद् (१.१)–अस्ति (√अस् लट् प्र.पु. एक.) |
पृथिव्यां | पृथिवी (७.१) |
वा | वा (अव्ययः) |
दिवि | दिव् (७.१) |
देवेषु | देव (७.३) |
वा | वा (अव्ययः) |
पुनः | पुनर् (अव्ययः) |
सत्त्वं | सत्त्व (१.१) |
प्रकृतिजैर्मुक्तं | प्रकृति–ज (३.३)–मुक्त (√मुच् + क्त, १.१) |
यदेभिः | यद् (१.१)–इदम् (३.३) |
स्यात्त्रिभिर्गुणैः | स्यात् (√अस् विधिलिङ् प्र.पु. एक.)–त्रि (३.३)–गुण (३.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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न | त | द | स्ति | पृ | थि | व्यां | वा |
दि | वि | दे | वे | षु | वा | पु | नः |
स | त्त्वं | प्र | कृ | ति | जै | र्मु | क्तं |
य | दे | भिः | स्या | त्त्रि | भि | र्गु | णैः |