Summary
Having attained the success, how he attains the Brahman, an attainment which is confirmed to be the final beatitude of true knowledge-that you must learn from Me briefly.
पदच्छेदः
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सिद्धिं | सिद्धि (२.१) |
प्राप्तो | प्राप्त (√प्र-आप् + क्त, १.१) |
यथा | यथा (अव्ययः) |
ब्रह्म | ब्रह्मन् (२.१) |
तथाप्नोति | तथा (अव्ययः)–आप्नोति (√आप् लट् प्र.पु. एक.) |
निबोध | निबोध (√नि-बुध् लोट् म.पु. ) |
मे | मद् (६.१) |
समासेनैव | समासेन (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
कौन्तेय | कौन्तेय (८.१) |
निष्ठा | निष्ठा (१.१) |
ज्ञानस्य | ज्ञान (६.१) |
या | यद् (१.१) |
परा | पर (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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सि | द्धिं | प्रा | प्तो | य | था | ब्र | ह्म |
त | था | प्नो | ति | नि | बो | ध | मे |
स | मा | से | नै | व | कौ | न्ते | य |
नि | ष्ठा | ज्ञा | न | स्य | या | प | रा |