Summary
He, who has got a totally pure intellect by fully controlling his self (mind) with firmness, and renouncing sense-objects, sound etc., and driving out desire and hatred;
पदच्छेदः
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बुद्ध्या | बुद्धि (३.१) |
विशुद्धया | विशुद्ध (√वि-शुध् + क्त, ३.१) |
युक्तो | युक्त (√युज् + क्त, १.१) |
धृत्यात्मानं | धृत्य (√धृ + क्त्वा)–आत्मन् (२.१) |
नियम्य | नियम्य (√नि-यम् + ल्यप्) |
च | च (अव्ययः) |
शब्दादीन्विषयांस्त्यक्त्वा | शब्द–आदि (२.३)–विषय (२.३)–त्यक्त्वा (√त्यज् + क्त्वा) |
रागद्वेषौ | राग–द्वेष (२.२) |
व्युदस्य | व्युदस्य (√व्युत्-अस् + ल्यप्) |
च | च (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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बु | द्ध्या | वि | शु | द्ध | या | यु | क्तो |
धृ | त्या | त्मा | नं | नि | य | म्य | च |
श | ब्दा | दी | न्वि | ष | यां | स्त्य | क्त्वा |
रा | ग | द्वे | षौ | व्यु | द | स्य | च |