Summary
Relinshing egotism, violence, pride, desire, wrath, and the sense of possession-he, the unselfish and calm one, is capable of becoming the Brahman.
पदच्छेदः
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अहंकारं | अहंकार (२.१) |
बलं | बल (२.१) |
दर्पं | दर्प (२.१) |
कामं | काम (२.१) |
क्रोधं | क्रोध (२.१) |
च | च (अव्ययः) |
संश्रिताः | संश्रित (√सम्-श्रि + क्त, १.३) |
स | तद् (१.१) |
गुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्मभूयाय | गुण (२.३)–समतीत्य (√समति-इ + ल्यप्)–एतद् (२.३)–ब्रह्मन्–भूय (४.१) |
कल्पते | कल्पते (√क्ᄆप् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | हं | का | रं | ब | लं | द | र्पं |
का | मं | क्रो | धं | प | रि | ग्र | हम् |
वि | मु | च्य | नि | र्म | मः | शा | न्तो |
ब्र | ह्म | भू | या | य | क | ल्प | ते |