Summary
Having become the Brahman, the serene-minded one neither grieves nor rejoices; remaining eal to all beings, he gains the highest devotion to Me.
पदच्छेदः
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ब्रह्मभूतः | ब्रह्मन्–भूत (√भू + क्त, १.१) |
प्रसन्नात्मा | प्रसन्न (√प्र-सद् + क्त)–आत्मन् (१.१) |
न | न (अव्ययः) |
शोचति | शोचति (√शुच् लट् प्र.पु. एक.) |
न | न (अव्ययः) |
काङ्क्षति | काङ्क्षति (√काङ्क्ष् लट् प्र.पु. एक.) |
समं | सम (२.१) |
सर्वेषु | सर्व (७.३) |
भूतेषु | भूत (७.३) |
तिष्ठन्तं | तिष्ठत् (√स्था + शतृ, २.१) |
परमेश्वरम् | परमेश्वर (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ब्र | ह्म | भू | तः | प्र | स | न्ना | त्मा |
न | शो | च | ति | न | का | ङ्क्ष | ति |
स | मः | स | र्वे | षु | भू | ते | षु |
म | द्भ | क्तिं | ल | भ | ते | प | राम् |