Summary
Through devotion he comes to know of Me : Who I am and how, in fact, I am-having correctly known Me, he enters Me. Then afterwards,
पदच्छेदः
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भक्त्या | भक्ति (३.१) |
मामभिजानाति | मद् (२.१)–अभिजानाति (√अभि-ज्ञा लट् प्र.पु. एक.) |
यावान्यश्चास्मि | यावत् (१.१)–यद् (१.१)–च (अव्ययः)–अस्मि (√अस् लट् उ.पु. ) |
तत्त्वतः | तत्त्व (५.१) |
ततो | ततस् (अव्ययः) |
मां | मद् (२.१) |
तत्त्वतो | तत्त्व (५.१) |
ज्ञात्वा | ज्ञात्वा (√ज्ञा + क्त्वा) |
विशते | विशते (√विश् लट् प्र.पु. एक.) |
तदनन्तरम् | तद् (२.१)–अनन्तरम् (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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भ | क्त्या | मा | म | भि | जा | ना | ति |
या | वा | न्य | श्चा | स्मि | त | त्त्व | तः |
त | तो | मां | त | त्त्व | तो | ज्ञा | त्वा |
वि | श | ते | त | द | न | न्त | रम् |