Summary
Performing all [his] actions all the time and taking refuge in Me, he attains, through My Grace, the eternal, changeless state.
पदच्छेदः
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सर्वकर्माण्यपि | सर्व–कर्मन् (२.३)–अपि (अव्ययः) |
सदा | सदा (अव्ययः) |
कुर्वाणो | कुर्वाण (√कृ + शानच्, १.१) |
मद्व्यपाश्रयः | मद्–व्यपाश्रय (१.१) |
मत्प्रसादादवाप्नोति | मद्–प्रसाद (५.१)–अवाप्नोति (√अव-आप् लट् प्र.पु. एक.) |
शाश्वतं | शाश्वत (२.१) |
पदमव्ययम् | पद (२.१)–अव्यय (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स | र्व | क | र्मा | ण्य | पि | स | दा |
कु | र्वा | णो | म | द्व्य | पा | श्र | यः |
म | त्प्र | सा | दा | द | वा | प्नो | ति |
शा | श्व | तं | प | द | म | व्य | यम् |