Summary
[Hence] renouncing by mind all actions in Me, O descendant of Bharata, and taking hold of the knowledge-Yoga, you must always be with your thought-organ [turned] towards Me.
पदच्छेदः
Click to Toggle
सर्वकर्माणि | सर्व–कर्मन् (२.३) |
मनसा | मनस् (३.१) |
संन्यस्यास्ते | संन्यस्य (√संनि-अस् + ल्यप्)–आस्ते (√आस् लट् प्र.पु. एक.) |
सुखं | सुखम् (अव्ययः) |
वशी | वशिन् (१.१) |
बुद्धियोगमुपाश्रित्य | बुद्धि–योग (२.१)–उपाश्रित्य (√उपा-श्रि + ल्यप्) |
मच्चित्तः | मद्–चित्त (१.१) |
सततं | सततम् (अव्ययः) |
भव | भव (√भू लोट् म.पु. ) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
चे | त | सा | स | र्व | क | र्मा | णि |
म | यि | सं | न्य | स्य | म | त्प | रः |
बु | द्धि | यो | ग | मु | पा | श्रि | त्य |
म | च्चि | त्तः | स | त | तं | भ | व |