Summary
In case, holding fast to the sense of ego, you think (decide) 'I shall not fight', that resolve of yours will be just useless. [For] your own natural condition will incite you [to fight].
पदच्छेदः
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यदहंकारमाश्रित्य | यत् (अव्ययः)–अहंकार (२.१)–आश्रित्य (√आ-श्रि + ल्यप्) |
न | न (अव्ययः) |
योत्स्य | योत्स्ये (√युध् लृट् उ.पु. ) |
इति | इति (अव्ययः) |
मन्यसे | मन्यसे (√मन् लट् म.पु. ) |
मिथ्यैष | मिथ्या (अव्ययः)–एतद् (१.१) |
व्यवसायस्ते | व्यवसाय (१.१)–त्वद् (६.१) |
प्रकृतिस्त्वां | प्रकृति (१.१)–त्वद् (२.१) |
नियोक्ष्यति | नियोक्ष्यति (√नि-युज् लृट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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य | द | हं | का | र | मा | श्रि | त्य |
न | यो | त्स्य | इ | ति | म | न्य | से |
मि | थ्यै | ष | व्य | व | सा | य | स्ते |
प्र | कृ | ति | स्त्वां | नि | यो | क्ष्य | ति |