Summary
O son of Kunti ! Being bound fully by your own duty, born of your own nature, and also being [hence] not independent, you would perform what you do not wish to perform, because of your-delusion.
पदच्छेदः
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स्वभावजेन | स्वभाव–ज (३.१) |
कौन्तेय | कौन्तेय (८.१) |
निबद्धः | निबद्ध (√नि-बन्ध् + क्त, १.१) |
स्वेन | स्व (३.१) |
कर्मणा | कर्मन् (३.१) |
कर्तुं | कर्तुम् (√कृ + तुमुन्) |
नेच्छसि | न (अव्ययः)–इच्छसि (√इष् लट् म.पु. ) |
यन्मोहात्करिष्यस्यवशो | यद् (२.१)–मोह (५.१)–करिष्यसि (√कृ लृट् म.पु. )–अवश (१.१) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
तत् | तद् (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स्व | भा | व | जे | न | कौ | न्ते | य |
नि | ब | द्धः | स्वे | न | क | र्म | णा |
क | र्तुं | ने | च्छ | सि | य | न्मो | हा |
त्क | रि | ष्य | स्य | व | शो | ऽपि | तत् |