Summary
Even these actions too must be performed by relinishing attachment and fruits : This is my considered best opinion, O son of Prtha !
पदच्छेदः
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योगस्थः | योग–स्थ (१.१) |
कुरु | कुरु (√कृ लोट् म.पु. ) |
कर्माणि | कर्मन् (२.३) |
सङ्गं | सङ्ग (२.१) |
त्यक्त्वा | त्यक्त्वा (√त्यज् + क्त्वा) |
धनंजय | धनंजय (८.१) |
कर्तव्यानीति | कर्तव्य (√कृ + कृत्, १.३)–इति (अव्ययः) |
मे | मद् (६.१) |
पार्थ | पार्थ (८.१) |
निश्चितं | निश्चित (√निः-चि + क्त, १.१) |
मतमुत्तमम् | मत (१.१)–उत्तम (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ए | ता | न्य | पि | तु | क | र्मा | णि |
स | ङ्गं | त्य | क्त्वा | फ | ला | नि | च |
क | र्त | व्या | नी | ति | मे | पा | र्थ |
नि | श्चि | तं | म | त | मु | त्त | मम् |