Summary
O Arjuna ! This Lord dwells in the heart of all beings, causing, by His trick-of-Illusion, all beings to whirl round [as if they are] mounted on a [revolving] mechanical contrivance.
पदच्छेदः
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ईश्वरः | ईश्वर (१.१) |
सर्वभूतानां | सर्व–भूत (६.३) |
हृद्देशे | हृद्–देश (७.१) |
ऽर्जुन | अर्जुन (८.१) |
तिष्ठति | तिष्ठति (√स्था लट् प्र.पु. एक.) |
भ्रामयन्सर्वभूतानि | भ्रामयत् (√भ्रामय् + शतृ, १.१)–सर्व–भूत (२.३) |
यन्त्रारूढानि | यन्त्र–आरूढ (√आ-रुह् + क्त, २.३) |
मायया | माया (३.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ई | श्व | रः | स | र्व | भू | ता | नां |
हृ | द्दे | शे | ऽर्जु | न | ति | ष्ठ | ति |
भ्रा | म | य | न्स | र्व | भू | ता | नि |
य | न्त्रा | रू | ढा | नि | मा | य | या |