Summary
Whosoever shall declare this highest secret to My devotees, he, cultivating an utmost devotion towards Me, and not entertaining any doubt, shall reach Me.
पदच्छेदः
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य | यद् (१.१) |
इदं | इदम् (२.१) |
परमं | परम (२.१) |
गुह्यं | गुह्य (२.१) |
मद्भक्तेष्वभिधास्यति | मद्–भक्त (७.३)–अभिधास्यति (√अभि-धा लृट् प्र.पु. एक.) |
भक्तिं | भक्ति (२.१) |
मयि | मद् (७.१) |
परां | पर (२.१) |
कृत्वा | कृत्वा (√कृ + क्त्वा) |
मामेवैष्यत्यसंशयः | मद् (२.१)–एव (अव्ययः)–एष्यति (√इ लृट् प्र.पु. एक.)–असंशय (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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य | इ | दं | प | र | मं | गु | ह्यं |
म | द्भ | क्ते | ष्व | भि | धा | स्य | ति |
भ | क्तिं | म | यि | प | रां | कृ | त्वा |
मा | मे | वै | ष्य | त्य | सं | श | यः |