Summary
Whosoever would learn this sacred dialogue of both of us, by him I am worshipped (delighted) through the knowledge-sacrifice : This is My opinion
पदच्छेदः
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अध्येष्यते | अध्येष्यते (√अधि-इ लृट् प्र.पु. एक.) |
च | च (अव्ययः) |
य | यद् (१.१) |
इमं | इदम् (२.१) |
धर्म्यं | धर्म्य (२.१) |
संवादमावयोः | संवाद (२.१)–मद् (६.२) |
ज्ञानयज्ञेन | ज्ञान–यज्ञ (३.१) |
तेनाहमिष्टः | तद् (३.१)–मद् (१.१)–इष्ट (√यज् + क्त, १.१) |
स्यामिति | स्याम् (√अस् विधिलिङ् उ.पु. )–इति (अव्ययः) |
मे | मद् (६.१) |
मतिः | मति (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | ध्ये | ष्य | ते | च | य | इ | मं |
ध | र्म्यं | सं | वा | द | मा | व | योः |
ज्ञा | न | य | ज्ञे | न | ते | ना | ह |
मि | ष्टः | स्या | मि | ति | मे | म | तिः |