Summary
A man who would at least hear to [this] with faith and without indignation-he too, freed [from sins], will attain the auspicious worlds of men of meritorius acts.
पदच्छेदः
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श्रद्धावाननसूयश्च | श्रद्धावत् (१.१)–अनसूय (१.१)–च (अव्ययः) |
शृणुयादपि | शृणुयात् (√श्रु विधिलिङ् प्र.पु. एक.)–अपि (अव्ययः) |
यो | यद् (१.१) |
नरः | नर (१.१) |
सो | तद् (१.१) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
मुक्तः | मुक्त (√मुच् + क्त, १.१) |
शुभांल्लोकान्प्राप्नुयात्पुण्यकर्मणाम् | शुभ (२.३)–लोक (२.३)–प्राप्नुयात् (√प्र-आप् विधिलिङ् प्र.पु. एक.)–पुण्य–कर्मन् (६.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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श्र | द्धा | वा | न | न | सू | य | श्च |
शृ | णु | या | द | पि | यो | न | रः |
सो | ऽपि | मु | क्तः | शु | भा | ल्लो | का |
न्प्रा | प्नु | या | त्पु | ण्य | क | र्म | णाम् |