Summary
O son of Prtha ! Has this been heared by you with attentive mind ? O Dhananjaya ! Has your strong delusion, born of ignorance, been totally destroyed ?
पदच्छेदः
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कच्चिदेतच्छ्रुतं | कच्चित् (अव्ययः)–एतद् (१.१)–श्रुत (√श्रु + क्त, १.१) |
पार्थ | पार्थ (८.१) |
त्वयैकाग्रेण | त्वद् (३.१)–एकाग्र (३.१) |
चेतसा | चेतस् (३.१) |
कच्चिदज्ञानसंमोहः | कच्चित् (अव्ययः)–अज्ञान–सम्मोह (१.१) |
प्रनष्टस्ते | प्रनष्ट (√प्र-नश् + क्त, १.१)–त्वद् (६.१) |
धनंजय | धनंजय (८.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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क | च्चि | दे | त | च्छ्रु | तं | पा | र्थ |
त्व | यै | का | ग्रे | ण | चे | त | सा |
क | च्चि | द | ज्ञा | न | सं | मो | हः |
प्र | न | ष्ट | स्ते | ध | नं | ज | य |