Summary
Through the grace of Vyasa, I have heard this highly secret supreme Yoga from Krsna, the Lord of the Yogins, while He was Himself imparting it personally.
पदच्छेदः
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व्यासप्रसादाच्छ्रुतवानेतद्गुह्यमहं | व्यास–प्रसाद (५.१)–श्रुतवत् (√श्रु + क्तवतु, १.१)–एतद् (२.१)–गुह्य (२.१)–मद् (१.१) |
परम् | पर (२.१) |
योगं | योग (२.१) |
योगेश्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयतः | योगेश्वर (५.१)–कृष्ण (५.१)–साक्षात् (अव्ययः)–कथयत् (√कथय् + शतृ, ५.१) |
स्वयम् | स्वयम् (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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व्या | स | प्र | सा | दा | च्छ्रु | त | वा |
ने | त | द्गु | ह्य | म | हं | प | रम् |
यो | गं | यो | गे | श्व | रा | त्कृ | ष्णा |
त्सा | क्षा | त्क | थ | य | तः | स्व | यम् |