Summary
O king ! By recollecting and recollecting this wonderful pious dialogue of Kesava and Arjuna, I feel also delighted again and again.
पदच्छेदः
Click to Toggle
राजन्संस्मृत्य | राजन् (८.१)–संस्मृत्य (√सम्-स्मृ + ल्यप्) |
संस्मृत्य | संस्मृत्य (√सम्-स्मृ + ल्यप्) |
संवादमिममद्भुतम् | संवाद (२.१)–इदम् (२.१)–अद्भुत (२.१) |
केशवार्जुनयोः | केशव–अर्जुन (६.२) |
पुण्यं | पुण्य (२.१) |
हृष्यामि | हृष्यामि (√हृष् लट् उ.पु. ) |
च | च (अव्ययः) |
मुहुर्मुहुः | मुहुर् (अव्ययः)–मुहुर् (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
रा | ज | न्सं | स्मृ | त्य | सं | स्मृ | त्य |
सं | वा | द | मि | म | म | द्भु | तम् |
के | श | वा | र्जु | न | योः | पु | ण्यं |
हृ | ष्या | मि | च | मु | हु | र्मु | हुः |