Summary
He who would, out of fear of bodily exertion, relinish an action, just because it is painful-that person, having [thus] made relinishment, an act of the Rajas (Strand), would not at all gain the fruit of [that] relinishment.
पदच्छेदः
Click to Toggle
दुःखमित्येव | दुःख (१.१)–इति (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
यत्कर्म | यद् (२.१)–कर्मन् (२.१) |
कायक्लेशभयात्त्यजेत् | काय–क्लेश–भय (५.१)–त्यजेत् (√त्यज् विधिलिङ् प्र.पु. एक.) |
स | तद् (१.१) |
कृत्वा | कृत्वा (√कृ + क्त्वा) |
राजसं | राजस (२.१) |
त्यागं | त्याग (२.१) |
नैव | न (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
त्यागफलं | त्याग–फल (२.१) |
लभेत् | लभेत् (√लभ् विधिलिङ् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
दुः | ख | मि | त्ये | व | य | त्क | र्म |
का | य | क्ले | श | भ | या | त्त्य | जेत् |
स | कृ | त्वा | रा | ज | सं | त्या | गं |
नै | व | त्या | ग | फ | लं | ल | भेत् |