Summary
Just as the boyhood, youth and old age come to the embodied Soul in this body, in the same manner is the attaining of another body; the wise man is not deluded at that.
पदच्छेदः
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देहिनो | देहिन् (६.१) |
ऽस्मिन्यथा | इदम् (७.१)–यथा (अव्ययः) |
देहे | देह (७.१) |
कौमारं | कौमार (१.१) |
यौवनं | यौवन (१.१) |
जरा | जरा (१.१) |
तथा | तथा (अव्ययः) |
देहान्तरप्राप्तिर् | देह–अन्तर–प्राप्ति (१.१) |
धीरस्तत्र | धीर (१.१)–तत्र (अव्ययः) |
न | न (अव्ययः) |
मुह्यति | मुह्यति (√मुह् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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दे | हि | नो | ऽस्मि | न्य | था | दे | हे |
कौ | मा | रं | यौ | व | नं | ज | रा |
त | था | दे | हा | न्त | र | प्रा | प्ति |
र्धी | र | स्त | त्र | न | मु | ह्य | ति |