Summary
O the best among persons ! That wise person becomes immortal whom these (situations) do not trouble and to whom the pleasure and pain are eal.
पदच्छेदः
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यं | यद् (२.१) |
हि | हि (अव्ययः) |
न | न (अव्ययः) |
व्यथयन्त्येते | व्यथयन्ति (√व्यथय् लट् प्र.पु. बहु.)–एतद् (१.३) |
पुरुषं | पुरुष (२.१) |
पुरुषर्षभ | पुरुष–ऋषभ (८.१) |
समदुःखसुखं | सम–दुःख–सुख (२.१) |
धीरं | धीर (२.१) |
सो | तद् (१.१) |
ऽमृतत्वाय | अमृत–त्व (४.१) |
कल्पते | कल्पते (√क्ᄆप् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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यं | हि | न | व्य | थ | य | न्त्ये | ते |
पु | रु | षं | पु | रु | ष | र्ष | भ |
स | म | दुः | ख | सु | खं | धी | रं |
सो | ऽमृ | त | त्वा | य | क | ल्प | ते |