Summary
And know That to be destructionsless, by Which all this (universe) is pervaded; no one is capable of causing destruction to this changeless One.
पदच्छेदः
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अविनाशि | अविनाशिन् (२.१) |
तु | तु (अव्ययः) |
तद्विद्धि | तद् (२.१)–विद्धि (√विद् लोट् म.पु. ) |
येन | यद् (३.१) |
सर्वमिदं | सर्व (१.१)–इदम् (१.१) |
ततम् | तत (√तन् + क्त, १.१) |
विनाशमव्ययस्यास्य | विनाश (२.१)–अव्यय (६.१)–इदम् (६.१) |
न | न (अव्ययः) |
कश्चित्कर्तुमर्हति | कश्चित् (१.१)–कर्तुम् (√कृ + तुमुन्)–अर्हति (√अर्ह् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | वि | ना | शि | तु | त | द्वि | द्धि |
ये | न | स | र्व | मि | दं | त | तम् |
वि | ना | श | म | व्य | य | स्या | स्य |
न | क | श्चि | त्क | र्तु | म | र्ह | ति |