Summary
Whosoever views This to be the slayer and whosoever believes This to be the slain, both these do not understand : This does not slay, nor is This slain.
पदच्छेदः
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य | यद् (१.१) |
एनं | एनद् (२.१) |
वेत्ति | वेत्ति (√विद् लट् प्र.पु. एक.) |
हन्तारं | हन्तृ (२.१) |
यश्चैनं | यद् (१.१)–च (अव्ययः)–एनद् (२.१) |
मन्यते | मन्यते (√मन् लट् प्र.पु. एक.) |
हतम् | हत (√हन् + क्त, २.१) |
उभौ | उभ् (१.२) |
तौ | तद् (१.२) |
न | न (अव्ययः) |
विजानीतो | विजानीतः (√वि-ज्ञा लट् प्र.पु. द्वि.) |
नायं | न (अव्ययः)–इदम् (१.१) |
हन्ति | हन्ति (√हन् लट् प्र.पु. एक.) |
न | न (अव्ययः) |
हन्यते | हन्यते (√हन् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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य | ए | नं | वे | त्ति | ह | न्ता | रं |
य | श्चै | नं | म | न्य | ते | ह | तम् |
उ | भौ | तौ | न | वि | जा | नी | तो |
ना | यं | ह | न्ति | न | ह | न्य | ते |