Summary
O descendant of Bharata ! This embodied One in the body of every one is for ever incapable of being slain. Therefore you should not lament over all beings.
पदच्छेदः
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देही | देहिन् (१.१) |
नित्यमवध्यो | नित्यम् (अव्ययः)–अवध्य (१.१) |
ऽयं | इदम् (१.१) |
देहे | देह (७.१) |
सर्वस्य | सर्व (६.१) |
भारत | भारत (८.१) |
तस्मादेवं | तस्मात् (अव्ययः)–एवम् (अव्ययः) |
विदित्वैनं | विदित्वा (√विद् + क्त्वा)–एनद् (२.१) |
नानुशोचितुमर्हसि | न (अव्ययः)–अनुशोचितुम् (√अनु-शुच् + तुमुन्)–अर्हसि (√अर्ह् लट् म.पु. ) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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दे | ही | नि | त्य | म | व | ध्यो | ऽयं |
दे | हे | स | र्व | स्य | भा | र | त |
त | स्मा | त्स | र्वा | णि | भू | ता | नि |
न | त्वं | शो | चि | तु | म | र्ह | सि |