Summary
Further, considering your own duty, you should not waver. Indeed, for a Ksatriya there exists no duty superior to fighting a righteous war.
पदच्छेदः
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स्वधर्ममपि | स्वधर्म (२.१)–अपि (अव्ययः) |
चावेक्ष्य | च (अव्ययः)–अवेक्ष्य (√अव-ईक्ष् + ल्यप्) |
न | न (अव्ययः) |
विकम्पितुमर्हसि | विकम्पितुम् (√वि-कम्प् + तुमुन्)–अर्हसि (√अर्ह् लट् म.पु. ) |
धर्म्याद्धि | धर्म्य (५.१)–हि (अव्ययः) |
युद्धाच्छ्रेयो | युद्ध (५.१)–श्रेयस् (१.१) |
ऽन्यत्क्षत्रियस्य | अन्य (१.१)–क्षत्रिय (६.१) |
न | न (अव्ययः) |
विद्यते | विद्यते (√विद् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स्व | ध | र्म | म | पि | चा | वे | क्ष्य |
न | वि | क | म्पि | तु | म | र्ह | सि |
ध | र्म्या | द्धि | यु | द्धा | च्छ्रे | यो | ऽन्य |
त्क्ष | त्रि | य | स्य | न | वि | द्य | ते |