Summary
Listen, how this knowledge, imparted [to you] for your sankhya, is [also] for the Yoga; endowed with which knowledge you shall cast off the bondage of action, O son of Prtha !
पदच्छेदः
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एषा | एतद् (१.१) |
ते | त्वद् (६.१) |
ऽभिहिता | अभिहित (√अभि-धा + क्त, १.१) |
सांख्ये | सांख्य (७.१) |
बुद्धिर् | बुद्धि (१.१) |
योगे | योग (७.१) |
त्विमां | तु (अव्ययः)–इदम् (२.१) |
शृणु | शृणु (√श्रु लोट् म.पु. ) |
बुद्ध्या | बुद्धि (३.१) |
युक्तो | युक्त (√युज् + क्त, १.१) |
यया | यद् (३.१) |
पार्थ | पार्थ (८.१) |
कर्मबन्धं | कर्मन्–बन्ध (२.१) |
प्रहास्यसि | प्रहास्यसि (√प्र-हा लृट् म.पु. ) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ए | षा | ते | ऽभि | हि | ता | सां | ख्ये |
बु | द्धि | र्यो | गे | त्वि | मां | शृ | णु |
बु | द्ध्या | यु | क्तो | य | या | पा | र्थ |
क | र्म | ब | न्धं | प्र | हा | स्य | सि |