Summary
When your determining faculty, that had been [earlier] confused by your hearing [of scriptural declaration of fruits] shall stand stable in concentration, at that time you shall attain the Yoga.
पदच्छेदः
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श्रुतिविप्रतिपन्ना | श्रुति–विप्रतिपन्न (√विप्रति-पद् + क्त, १.१) |
ते | त्वद् (६.१) |
यदा | यदा (अव्ययः) |
स्थास्यति | स्थास्यति (√स्था लृट् प्र.पु. एक.) |
निश्चला | निश्चल (१.१) |
समाधावचला | समाधि (७.१)–अचल (१.१) |
बुद्धिस् | बुद्धि (१.१) |
तदा | तदा (अव्ययः) |
योगमवाप्स्यसि | योग (२.१)–अवाप्स्यसि (√अव-आप् लृट् म.पु. ) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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श्रु | ति | वि | प्र | ति | प | न्ना | ते |
य | दा | स्था | स्य | ति | नि | श्च | ला |
स | मा | धा | व | च | ला | बु | द्धि |
स्त | दा | यो | ग | म | वा | प्स्य | सि |