Summary
Leaving their taste [behind], the sense-objects retreat from the embodied who abstain from food; his taste too disappears when he sees the Supreme.
पदच्छेदः
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विषया | विषय (१.३) |
विनिवर्तन्ते | विनिवर्तन्ते (√विनि-वृत् लट् प्र.पु. बहु.) |
निराहारस्य | निराहार (६.१) |
देहिनः | देहिन् (६.१) |
रसवर्जं | रस–वर्जम् (अव्ययः) |
रसो | रस (१.१) |
ऽप्यस्य | अपि (अव्ययः)–इदम् (६.१) |
परं | पर (२.१) |
दृष्ट्वा | दृष्ट्वा (√दृश् + क्त्वा) |
निवर्तते | निवर्तते (√नि-वृत् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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वि | ष | या | वि | नि | व | र्त | न्ते |
नि | रा | हा | र | स्य | दे | हि | नः |
र | स | व | र्जं | र | सो | ऽप्य | स्य |
प | रं | दृ | ष्ट्वा | नि | व | र्त | ते |